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RAJASTHANI KAVITA राजस्थानी कविता : झगड़क बिलोवणो कद करस्यां

झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
भैंस ब्याई ल्याई कटो , बापू ल्यायो चूरी रो गटो,
कढावणी  में दूध अब धरस्याँ , झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
दस दिन बाद चूरी कम पड़गी ,
इस्युं भैंस अठ्पोरी पड़गी ,
अब तो चुंटीये गा ही पड़ग्या  सांसा,
झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
एक दिन भोमलो ,बोल्यो माऊ
दो किलो घी माँगे है ताऊ
बाने जवाब आपां के देस्याँ ,
झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
चुंटीयो सारों खेमलो खाजै,
जद ही डामकी सो बिंगो पेट बाजै
घी गी मिरकली कियां भरस्याँ ,
झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
बापू एक दिन काड़ी आँख्यां ,
रिस्याँ में आ गे माऊ कानी देख्या ,
बटाऊवां गी स्यान कियां बचास्याँ ,
झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
चा आको दूध अब बचे कोनी,
बापू अकेड़ा बेच दी खोली अर ल्या दी घोनी,
अब पोटा आकी जिग्याँ मींगणी गैर स्यां ,
झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
दो आना दो इयाँ ही रेगी,
घोनड़ी एक दिन जवाब देगी ,
अब तो दूध ही डेरी पर स्यूं लेस्यां ,
झगड़क बिलोवणो कद करस्यां ?
                                           मोहन लाल सोढा